भजन संहिता 121

1 मैं अपनी आंखें पर्वतों की ओर लगाऊंगा। मुझे सहायता कहां से मिलेगी? 2 मुझे सहायता यहोवा की ओर से मिलती है, जो आकाश और पृथ्वी का कर्ता है॥ 3 वह तेरे पांव को टलने न देगा, तेरा रक्षक कभी न ऊंघेगा। 4 सुन, इस्राएल का रक्षक, न ऊंघेगा और न सोएगा॥ 5 यहोवा तेरा […]

भजन संहिता 122

1 जब लोगों ने मुझ से कहा, कि हम यहोवा के भवन को चलें, तब मैं आनन्दित हुआ। 2 हे यरूशलेम, तेरे फाटकों के भीतर, हम खड़े हो गए हैं! 3 हे यरूशलेम, तू ऐसे नगर के समान बना है, जिसके घर एक दूसरे से मिले हुए हैं। 4 वहां याह के गोत्र गोत्र के […]

भजन संहिता 123

1 हे स्वर्ग में विराजमान मैं अपनी आंखें तेरी ओर लगाता हूं! 2 देख, जैसे दासों की आंखें अपने स्वामियों के हाथ की ओर, और जैसे दासियों की आंखें अपनी स्वामिनी के हाथ की ओर लगी रहती है, वैसे ही हमारी आंखें हमारे परमेश्वर यहोवा की ओर उस समय तक लगी रहेंगी, जब तक वह […]

भजन संहिता 124

1 इस्राएल यह कहे, कि यदि हमारी ओर यहोवा न होता, 2 यदि यहोवा उस समय हमारी ओर न होता जब मनुष्यों ने हम पर चढ़ाई की, 3 तो वे हम को उसी समय जीवित निगल जाते, जब उनका क्रोध हम पर भड़का था, 4 हम उसी समय जल में डूब जाते और धारा में […]

भजन संहिता 125

1 जो यहोवा पर भरोसा रखते हैं, वे सिय्योन पर्वत के समान हैं, जो टलता नहीं, वरन सदा बना रहता है। 2 जिस प्रकार यरूशलेम के चारों ओर पहाड़ हैं, उसी प्रकार यहोवा अपनी प्रजा के चारों ओर अब से लेकर सर्वदा तक बना रहेगा। 3 क्योंकि दुष्टों का राजदण्ड धर्मियों के भाग पर बना […]

भजन संहिता 126

1 जब यहोवा सिय्योन से लौटने वालों को लौटा ले आया, तब हम स्वप्न देखने वाले से हो गए। 2 तब हम आनन्द से हंसने और जयजयकार करने लगे; तब जाति जाति के बीच में कहा जाता था, कि यहोवा ने, इनके साथ बड़े बड़े काम किए हैं। 3 यहोवा ने हमारे साथ बड़े बड़े […]

भजन संहिता 127

1 यदि घर को यहोवा न बनाए, तो उसके बनाने वालों को परिश्रम व्यर्थ होगा। यदि नगर की रक्षा यहोवा न करे, तो रखवाले का जागना व्यर्थ ही होगा। 2 तुम जो सवेरे उठते और देर करके विश्राम करते और दु:ख भरी रोटी खाते हो, यह सब तुम्हारे लिये व्यर्थ ही है; क्योंकि वह अपने […]

भजन संहिता 128

1 क्या ही धन्य है हर एक जो यहोवा का भय मानता है, और उसके मार्गों पर चलता है! 2 तू अपनी कमाई को निश्चय खाने पाएगा; तू धन्य होगा, और तेरा भला ही होगा॥ 3 तेरे घर के भीतर तेरी स्त्री फलवन्त दाखलता सी होगी; तेरी मेज के चारों ओर तेरे बालक जलपाई के […]

भजन संहिता 129

1 इस्राएल अब यह कहे, कि मेरे बचपन से लोग मुझे बार बार क्लेश देते आए हैं, 2 मेरे बचपन से वे मुझ को बार बार क्लेश देते तो आए हैं, परन्तु मुझ पर प्रबल नहीं हुए। 3 हलवाहों ने मेरी पीठ के ऊपर हल चलाया, और लम्बी लम्बी रेखाएं कीं। 4 यहोवा धर्मी है; […]

भजन संहिता 130

1 हे यहोवा, मैं ने गहिरे स्थानों में से तुझ को पुकारा है! 2 हे प्रभु, मेरी सुन! तेरे कान मेरे गिड़गिड़ाने की ओर ध्यान से लगे रहें! 3 हे याह, यदि तू अधर्म के कामों का लेखा ले, तो हे प्रभु कौन खड़ा रह सकेगा? 4 परन्तु तू क्षमा करने वाला है? जिस से […]