विलापगीत 1

1 जो नगरी लोगों से भरपूर थी वह अब कैसी अकेली बैठी हुई है! वह क्यों एक विधवा के समान बन गई? वह जो जातियों की दृष्टि में महान और प्रान्तों में रानी थी, अब क्यों कर देने वाली हो गई है। 2 रात को वह फूट फूट कर रोती है, उसके आंसू गालों पर […]

विलापगीत 2

1 यहोवा ने सिय्योन की पुत्री को किस प्रकार अपने कोप के बादलों से ढांप दिया है! उसने इस्राएल की शोभा को आकाश से धरती पर पटक दिया; और कोप के दिन अपने पांवों की चौकी को स्मरण नहीं किया। 2 यहोवा ने याकूब की सब बस्तियों को निठुरता से नष्ट किया है; उसने रोष […]

विलापगीत 3

1 उसके रोष की छड़ी से दु:ख भोगने वाला पुरुष मैं ही हूं; 2 वह मुझे ले जा कर उजियाले में नहीं, अन्धियारे ही में चलाता है; 3 उसका हाथ दिन भर मेरे ही विरुद्ध उठता रहता है। 4 उसने मेरा मांस और चमड़ा गला दिया है, और मेरी हड्डियों को तोड़ दिया है; 5 […]

विलापगीत 4

1 सोना कैसे खोटा हो गया, अत्यन्त खरा सोना कैसे बदल गया है? पवित्रस्थान के पत्थर तो हर एक सड़क के सिरे पर फेंक दिए गए हैं। 2 सिय्योन के उत्तम पुत्र जो कुन्दन के तुल्य थे, वे कुम्हार के बनाए हुए मिट्टी के घड़ों के समान कैसे तुच्छ गिने गए हैं! 3 गीदड़िन भी […]

विलापगीत 5

1 हे यहोवा, स्मरण कर कि हम पर क्या क्या बीता है; हमारी ओर दृष्टि कर के हमारी नामधराई को देख! 2 हमारा भाग परदेशियों का हो गया ओर हमारे घर परायों के हो गए हैं। 3 हम अनाथ और पिताहीन हो गए; हमारी माताएं विधवा सी हो गई हैं। 4 हम मोल ले कर […]