1 यरूशलेम के राजा, दाऊद के पुत्र और उपदेशक के वचन। 2 उपदेशक का यह वचन है, कि व्यर्थ ही व्यर्थ, व्यर्थ ही व्यर्थ! सब कुछ व्यर्थ है। 3 उस सब परिश्रम से जिसे मनुष्य धरती पर करता है, उसको क्या लाभ प्राप्त होता है? 4 एक पीढ़ी जाती है, और दूसरी पीढ़ी आती है, […]
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सभोपदेशक 2
1 मैं ने अपने मन से कहा, चल, मैं तुझ को आनन्द के द्वारा जांचूंगा; इसलिये आनन्दित और मगन हो। परन्तु देखो, यह भी व्यर्थ है। 2 मैं ने हंसी के विषय में कहा, यह तो बावलापन है, और आनन्द के विषय में, उस से क्या प्राप्त होता है? 3 मैं ने मन में सोचा […]
सभोपदेशक 3
1 हर एक बात का एक अवसर और प्रत्येक काम का, जो आकाश के नीचे होता है, एक समय है। 2 जन्म का समय, और मरन का भी समय; बोने का समय; और बोए हुए को उखाड़ने का भी समय है; 3 घात करने का समय, और चंगा करने का भी समय; ढा देने का […]
सभोपदेशक 4
1 तब मैं ने वह सब अन्धेर देखा जो संसार में होता है। और क्या देखा, कि अन्धेर सहने वालों के आंसू बह रहे हैं, और उन को कोई शान्ति देने वाला नहीं! अन्धेर करने वालों के हाथ में शक्ति थी, परन्तु उन को कोई शान्ति देने वाला नहीं था। 2 इसलिये मैं ने मरे […]
सभोपदेशक 5
1 जब तू परमेश्वर के भवन में जाए, तब सावधानी से चलना; सुनने के लिये समीप जाना मूर्खों के बलिदान चढ़ाने से अच्छा है; क्योंकि वे नहीं जानते कि बुरा करते हैं। 2 बातें करने में उतावली न करना, और न अपने मन से कोई बात उतावली से परमेश्वर के साम्हने निकालना, क्योंकि परमेश्वर स्वर्ग […]
सभोपदेशक 6
1 एक बुराई जो मैं ने धरती पर देखी है, वह मनुष्यों को बहुत भारी लगती है: 2 किसी मनुष्य को परमेश्वर धन सम्पत्ति और प्रतिष्ठा यहां तक देता है कि जो कुछ उसका मन चाहता है उसे उसकी कुछ भी घटी नहीं होती, तौभी परमेश्वर उसको उस में से खाने नहीं देता, कोई दूसरा […]
सभोपदेशक 7
1 अच्छा नाम अनमोल इत्र से और मृत्यु का दिन जन्म के दिन से उत्तम है। 2 जेवनार के घर जाने से शोक ही के घर जाना उत्तम है; क्योंकि सब मनुष्यों का अन्त यही है, और जो जीवित है वह मन लगाकर इस पर सोचेगा। 3 हंसी से खेद उत्तम है, क्योंकि मुंह पर […]
सभोपदेशक 8
1 बुद्धिमान के तुल्य कौन है? और किसी बात का अर्थ कौन लगा सकता है? मनुष्य की बुद्धि के कारण उसका मुख चमकता, और उसके मुख की कठोरता दूर हो जाती है। 2 मैं तुझे सम्मति देता हूं कि परमेश्वर की शपथ के कारण राजा की आज्ञा मान। 3 राजा के साम्हने से उतावली के […]
सभोपदेशक 9
1 यह सब कुछ मैं ने मन लगाकर विचारा कि इन सब बातों का भेद पाऊं, कि किस प्रकार धर्मी और बुद्धिमान लोग और उनके काम परमेश्वर के हाथ में हैं; मनुष्य के आगे सब प्रकार की बातें हैं परन्तु वह नहीं जानता कि वह प्रेम है व बैर। 2 सब बातें सभों को एक […]
सभोपदेशक 10
1 मरी हुई मक्खियों के कारण गन्धी का तेल सड़ने और बसाने लगता है; और थोड़ी सी मूर्खता बुद्धि और प्रतिष्ठा को घटा देती है। 2 बुद्धिमान का मन उचित बात की ओर रहता है परन्तु मूर्ख का मन उसके विपरीत रहता है। 3 वरन जब मूर्ख मार्ग पर चलता है, तब उसकी समझ काम […]