निर्गमन 22

1 यदि कोई मनुष्य बैल, वा भेड़, वा बकरी चुराकर उसका घात करे वा बेच डाले, तो वह बैल की सन्ती पाँच बैल, और भेड़-बकरी की सन्ती चार भेड़-बकरी भर दे।

2 यदि चोर सेंध लगाते हुए पकड़ा जाए, और उस पर ऐसी मार पड़े कि वह मर जाए, तो उसके खून का दोष न लगे;

3 यदि सूर्य निकल चुके, तो उसके खून का दोष लगे; अवश्य है कि वह हानि को भर दे, और यदि उसके पास कुछ न हो, तो वह चोरी के कारण बेच दिया जाए।

4 यदि चुराया हुआ बैल, वा गदहा, वा भेड़ वा बकरी उसके हाथ में जीवित पाई जाए, तो वह उसका दूना भर दे॥

5 यदि कोई अपने पशु से किसी का खेत वा दाख की बारी चराए, अर्थात अपने पशु को ऐसा छोड़ दे कि वह पराए खेत को चर ले, तो वह अपने खेत की और अपनी दाख की बारी की उत्तम से उत्तम उपज में से उस हानि को भर दे॥

6 यदि कोई आग जलाए, और वह कांटों में लग जाए और फूलों के ढेर वा अनाज वा खड़ा खेत जल जाए, तो जिसने आग जलाई हो वह हानि को निश्चय भर दे॥

7 यदि कोई दूसरे को रूपए वा सामग्री की धरोहर धरे, और वह उसके घर से चुराई जाए, तो यदि चोर पकड़ा जाए, तो दूना उसी को भर देना पकेगा।

8 और यदि चोर न पकड़ा जाए, तो घर का स्वामी परमेश्वर के पास लाया जाए, कि निश्चय हो जाय कि उसने अपने भाई बन्धु की सम्पत्ति पर हाथ लगाया है वा नहीं।

9 चाहे बैल, चाहे गदहे, चाहे भेड़ वा बकरी, चाहे वस्त्र, चाहे किसी प्रकार की ऐसी खोई हुई वस्तु के विषय अपराध क्यों न लगाया जाय, जिसे दो जन अपनी अपनी कहते हों, तो दोनों का मुकद्दमा परमेश्वर के पास आए; और जिस को परमेश्वर दोषी ठहराए वह दूसरे को दूना भर दे॥

10 यदि कोई दूसरे को गदहा वा बैल वा भेड़-बकरी वा कोई और पशु रखने के लिये सौपें, और किसी के बिना देखे वह मर जाए, वा चोट खाए, वा हांक दिया जाए,

11 तो उन दोनो के बीच यहोवा की शपथ खिलाई जाए कि मैं ने इसकी सम्पत्ति पर हाथ नहीं लगाया; तब सम्पत्ति का स्वामी इस को सच माने, और दूसरे को उसे कुछ भी भर देना न होगा।

12 यदि वह सचमुच उसके यहां से चुराया गया हो, तो वह उसके स्वामी को उसे भर दे।

13 और यदि वह फाड़ डाला गया हो, तो वह फाड़े हुए को प्रमाण के लिये ले आए, तब उसे उसको भी भर देना न पड़ेगा॥

14 फिर यदि कोई दूसरे से पशु मांग लाए, और उसके स्वामी के संग न रहते उसको चोट लगे वा वह मर जाए, तो वह निश्चय उसकी हानि भर दे।

15 यदि उसका स्वामी संग हो, तो दूसरे को उसकी हानि भरना न पड़े; और यदि वह भाड़े का हो तो उसकी हानि उसके भाड़े में आ गई॥

16 यदि कोई पुरूष किसी कन्या को जिसके ब्याह की बात न लगी हो फुसलाकर उसके संग कुकर्म करे, तो वह निश्चय उसका मोल देके उसे ब्याह ले।

17 परन्तु यदि उसका पिता उसे देने को बिल्कुल इनकार करे, तो कुकर्म करने वाला कन्याओं के मोल की रीति के अनुसार रूपये तौल दे॥

18 तू डाइन को जीवित रहने न देना॥

19 जो कोई पशुगमन करे वह निश्चय मार डाला जाए॥

20 जो कोई यहोवा को छोड़ किसी और देवता के लिये बलि करे वह सत्यनाश किया जाए।

21 और परदेशी को न सताना और न उस पर अन्धेर करना क्योंकि मिस्र देश में तुम भी परदेशी थे।

22 किसी विधवा वा अनाथ बालक को दु:ख न देना।

23 यदि तुम ऐसों को किसी प्रकार का दु:ख दो, और वे कुछ भी मेरी दोहाई दें, तो मैं निश्चय उनकी दोहाई सुनूंगा;

24 तब मेरा क्रोध भड़केगा, और मैं तुम को तलवार से मरवाऊंगा, और तुम्हारी पत्नियां विधवा और तुम्हारे बालक अनाथ हो जाएंगे॥

25 यदि तू मेरी प्रजा में से किसी दीन को जो तेरे पास रहता हो रूपए का ऋण दे, तो उससे महाजन की नाईं ब्याज न लेना।

26 यदि तू कभी अपने भाईबन्धु के वस्त्र को बन्धक करके रख भी ले, तो सूर्य के अस्त होने तक उसको लौटा देना;

27 क्योंकि वह उसका एक ही ओढ़ना है, उसकी देह का वही अकेला वस्त्र होगा फिर वह किसे ओढ़कर सोएगा? तोभी जब वह मेरी दोहाई देगा तब मैं उसकी सुनूंगा, क्योंकि मैं तो करूणामय हूं॥

28 परमेश्वर को श्राप न देना, और न अपने लोगों के प्रधान को श्राप देना।

29 अपने खेतों की उपज और फलों के रस में से कुछ मुझे देने में विलम्ब न करना। अपने बेटों में से पहिलौठे को मुझे देना।

30 वैसे ही अपनी गायों और भेड़-बकरियों के पहिलौठे भी देना; सात दिन तक तो बच्चा अपनी माता के संग रहे, और आठवें दिन तू उसे मुझे दे देना।

31 और तुम मेरे लिये पवित्र मनुष्य बनना; इस कारण जो पशु मैदान में फाड़ा हुआ पड़ा मिले उसका मांस न खाना, उसको कुत्तों के आगे फेंक देना॥

निर्गमन 23

1 झूठी बात न फैलाना। अन्यायी साक्षी हो कर दुष्ट का साथ न देना।

2 बुराई करने के लिये न तो बहुतों के पीछे हो लेना; और न उनके पीछे फिरके मुकद्दमें में न्याय बिगाड़ने को साक्षी देना;

3 और कंगाल के मुकद्दमें में उसका भी पक्ष न करना॥

4 यदि तेरे शत्रु का बैल वा गदहा भटकता हुआ तुझे मिले, तो उसे उसके पास अवश्य फेर ले आना।

5 फिर यदि तू अपने बैरी के गदहे को बोझ के मारे दबा हुआ देखे, तो चाहे उसको उसके स्वामी के लिये छुड़ाने के लिये तेरा मन न चाहे, तौभी अवश्य स्वामी का साथ देकर उसे छुड़ा लेना॥

6 तेरे लोगों में से जो दरिद्र हों उसके मुकद्दमे में न्याय न बिगाड़ना।

7 झूठे मुकद्दमे से दूर रहना, और निर्दोष और धर्मी को घात न करना, क्योंकि मैं दुष्ट को निर्दोष न ठहराऊंगा।

8 घूस न लेना, क्योंकि घूस देखने वालों को भी अन्धा कर देता, और धर्मियों की बातें पलट देता है।

9 परदेशी पर अन्धेर न करना; तुम तो परदेशी के मन की बातें जानते हो, क्योंकि तुम भी मिस्र देश में परदेशी थे॥

10 छ: वर्ष तो अपनी भूमि में बोना और उसकी उपज इकट्ठी करना;

11 परन्तु सातवें वर्ष में उसको पड़ती रहने देना और वैसा ही छोड़ देना, तो तेरे भाई बन्धुओं में के दरिद्र लोग उससे खाने पाएं, और जो कुछ उन से भी बचे वह बनैले पशुओं के खाने के काम में आए। और अपनी दाख और जलपाई की बारियों को भी ऐसे ही करना।

12 छ: दिन तक तो अपना काम काज करना, और सातवें दिन विश्राम करना; कि तेरे बैल और गदहे सुस्ताएं, और तेरी दासियों के बेटे और परदेशी भी अपना जी ठंडा कर सकें।

13 और जो कुछ मैं ने तुम से कहा है उस में सावधान रहना; और दूसरे देवताओं के नाम की चर्चा न करना, वरन वे तुम्हारे मुंह से सुनाईं भी न दें।

14 प्रति वर्ष तीन बार मेरे लिये पर्ब्ब मानना।

15 अखमीरी रोटी का पर्ब्ब मानना; उस में मेरी आज्ञा के अनुसार अबीब महीने के नियत समय पर सात दिन तक अखमीरी रोटी खाया करना, क्योंकि उसी महीने में तुम मिस्र से निकल आए। और मुझ को कोई छूछे हाथ अपना मुंह न दिखाए।

16 और जब तेरी बोई हुई खेती की पहिली उपज तैयार हो, तब कटनी का पर्ब्ब मानना। और वर्ष के अन्त में जब तू परिश्रम के फल बटोर के ढेर लगाए, तब बटोरन का पर्ब्ब मानना।

17 प्रति वर्ष तीनों बार तेरे सब पुरूष प्रभु यहोवा को अपना मुंह दिखाएं॥

18 मेरे बलिपशु का लोहू खमीरी रोटी के संग न चढ़ाना, और न मेरे पर्ब्ब के उत्तम बलिदान में से कुछ बिहान तक रहने देना।

19 अपनी भूमि की पहिली उपज का पहिला भाग अपने परमेश्वर यहोवा के भवन में ले आना। बकरी का बच्चा उसकी माता के दूध में न पकाना॥

20 सुन, मैं एक दूत तेरे आगे आगे भेजता हूं जो मार्ग में तेरी रक्षा करेगा, और जिस स्थान को मैं ने तैयार किया है उस में तुझे पहुंचाएगा।

21 उसके साम्हने सावधान रहना, और उसकी मानना, उसका विरोध न करना, क्योंकि वह तुम्हारा अपराध क्षमा न करेगा; इसलिये कि उस में मेरा नाम रहता है।

22 और यदि तू सचमुच उसकी माने और जो कुछ मैं कहूं वह करे, तो मैं तेरे शत्रुओं का शत्रु और तेरे द्रोहियों का द्रोही बनूंगा।

23 इस रीति मेरा दूत तेरे आगे आगे चलकर तुझे एमोरी, हित्ती, परज्जी, कनानी, हिब्बी, और यबूसी लोगों के यहां पहुंचाएगा, और मैं उन को सत्यनाश कर डालूंगा।

24 उनके देवताओं को दण्डवत न करना, और न उनकी उपासना करना, और न उनके से काम करना, वरन उन मूरतों को पूरी रीति से सत्यानाश कर डालना, और उन लोगों की लाटों के टुकड़े टुकड़े कर देना।

25 और तुम अपने परमेश्वर यहोवा की उपासना करना, तब वह तेरे अन्न जल पर आशीष देगा, और तेरे बीच में से रोग दूर करेगा।

26 तेरे देश में न तो किसी का गर्भ गिरेगा और न कोई बांझ होगी; और तेरी आयु मैं पूरी करूंगा।

27 जितने लोगों के बीच तू जायेगा उन सभों के मन में मैं अपना भय पहिले से ऐसा समवा दूंगा कि उन को व्याकुल कर दूंगा, और मैं तुझे सब शत्रुओं की पीठ दिखाऊंगा।

28 और मैं तुझ से पहिले बर्रों को भेजूंगा जो हिब्बी, कनानी, और हित्ती लोगों को तेरे साम्हने से भगा के दूर कर देंगी।

29 मैं उन को तेरे आगे से एक ही वर्ष में तो न निकाल दूंगा, ऐसा न हो कि देश उजाड़ हो जाए, और बनैले पशु बढ़कर तुझे दु:ख देने लगें।

30 जब तक तू फूल फलकर देश को अपने अधिकार में न कर ले तब तक मैं उन्हें तेरे आगे से थोड़ा थोड़ा करके निकालता रहूंगा।

31 मैं लाल समुद्र से ले कर पलिश्तियों के समुद्र तक और जंगल से ले कर महानद तक के देश को तेरे वश में कर दूंगा; मैं उस देश के निवासियों भी तेरे वश में कर दूंगा, और तू उन्हें अपने साम्हने से बरबस निकालेगा।

32 तू न तो उन से वाचा बान्धना और न उनके देवताओं से।

33 वे तेरे देश में रहने न पाएं, ऐसा न हो कि वे तुझ से मेरे विरुद्ध पाप कराएं; क्योंकि यदि तू उनके देवताओं की उपासना करे, तो यह तेरे लिये फंदा बनेगा॥

निर्गमन 24

1 फिर उसने मूसा से कहा, तू, हारून, नादाब, अबीहू, और इस्त्राएलियों के सत्तर पुरनियों समेत यहोवा के पास ऊपर आकर दूर से दण्डवत करना।

2 और केवल मूसा यहोवा के समीप आए; परन्तु वे समीप न आएं, और दूसरे लोग उसके संग ऊपर न आएं।

3 तब मूसा ने लोगों के पास जा कर यहोवा की सब बातें और सब नियम सुना दिए; तब सब लोग एक स्वर से बोल उठे, कि जितनी बातें यहोवा ने कही हैं उन सब बातों को हम मानेंगे।

4 तब मूसा ने यहोवा के सब वचन लिख दिए। और बिहान को सवेरे उठ कर पर्वत के नीचे एक वेदी और इस्त्राएल के बारहों गोत्रों के अनुसार बारह खम्भे भी बनवाए।

5 तब उसने कई इस्त्राएली जवानों को भेजा, जिन्होंने यहोवा के लिये होमबलि और बैलों के मेलबलि चढ़ाए।

6 और मूसा ने आधा लोहू तो ले कर कटारों में रखा, और आधा वेदी पर छिड़क दिया।

7 तब वाचा की पुस्तक को ले कर लोगों को पढ़ सुनाया; उसे सुनकर उन्होंने कहा, जो कुछ यहोवा ने कहा है उस सब को हम करेंगे, और उसकी आज्ञा मानेंगे।

8 तब मूसा ने लोहू को ले कर लोगों पर छिड़क दिया, और उन से कहा, देखो, यह उस वाचा का लोहू है जिसे यहोवा ने इन सब वचनों पर तुम्हारे साथ बान्धी है।

9 तब मूसा, हारून, नादाब, अबीहू और इस्त्राएलियों के सत्तर पुरनिए ऊपर गए,

10 और इस्त्राएल के परमेश्वर का दर्शन किया; और उसके चरणों के तले नीलमणि का चबूतरा सा कुछ था, जो आकाश के तुल्य ही स्वच्छ था।

11 और उसने इस्त्राएलियोंके प्रधानों पर हाथ न बढ़ाया; तब उन्होंने परमेश्वर का दर्शन किया, और खाया पिया॥

12 तब यहोवा ने मूसा से कहा, पहाड़ पर मेरे पास चढ़, और वहां रह; और मैं तुझे पत्थर की पटियाएं, और अपनी लिखी हुई व्यवस्था और आज्ञा दूंगा, कि तू उन को सिखाए।

13 तब मूसा यहोशू नाम अपने टहलुए समेत परमेश्वर के पर्वत पर चढ़ गया।

14 कि जब तक हम तुम्हारे पास फिर न आएं तब तक तुम यहीं हमारी बाट जोहते रहो; और सुनो, हारून और हूर तुम्हारे संग हैं; तो यदि किसी का मुकद्दमा हो तो उन्हीं के पास जाए।

15 तब मूसा पर्वत पर चढ़ गया, और बादल ने पर्वत को छा लिया।

16 तब यहोवा के तेज ने सीनै पर्वत पर निवास किया, और वह बादल उस पर छ: दिन तक छाया रहा; और सातवें दिन उसने मूसा को बादल के बीच में से पुकारा।

17 और इस्त्राएलियों की दृष्टि में यहोवा का तेज पर्वत की चोटी पर प्रचण्ड आग सा देख पड़ता था।

18 तब मूसा बादल के बीच में प्रवेश करके पर्वत पर चढ़ गया। और मूसा पर्वत पर चालीस दिन और चालीस रात रहा॥

निर्गमन 25

1 यहोवा ने मूसा से कहा,

2 इस्त्राएलियों से यह कहना, कि मेरे लिये भेंट लाएं; जितने अपनी इच्छा से देना चाहें उन्हीं सभों से मेरी भेंट लेना।

3 और जिन वस्तुओं की भेंट उन से लेनी हैं वे ये हैं; अर्थात सोना, चांदी, पीतल,

4 नीले, बैंजनी और लाल रंग का कपड़ा, सूक्ष्म सनी का कपड़ा, बकरी का बाल,

5 लाल रंग से रंगी हुई मेढ़ों की खालें, सुइसों की खालें, बबूल की लकड़ी,

6 उजियाले के लिये तेल, अभिषेक के तेल के लिये और सुगन्धित धूप के लिये सुगन्ध द्रव्य,

7 एपोद और चपरास के लिये सुलैमानी पत्थर, और जड़ने के लिये मणि।

8 और वे मेरे लिये एक पवित्रस्थान बनाए, कि मैं उनके बीच निवास करूं।

9 जो कुछ मैं तुझे दिखाता हूं, अर्थात निवासस्थान और उसके सब सामान का नमूना, उसी के अनुसार तुम लोग उसे बनाना॥

10 बबूल की लकड़ी का एक सन्दूक बनाया जाए; उसकी लम्बाई अढ़ाई हाथ, और चौड़ाई और ऊंचाई डेढ़ डेढ़ हाथ की हों।

11 और उसको चोखे सोने से भीतर और बाहर मढ़वाना, और सन्दूक के ऊपर चारोंओर सोने की बाड़ बनवाना।

12 और सोने के चार कड़े ढलवाकर उसके चारोंपायों पर, एक अलंग दो कड़े और दूसरी अलंग भी दो कड़े लगवाना।

13 फिर बबूल की लकड़ी के डण्डे बनवाना, और उन्हे भी सोने से मढ़वाना।

14 और डण्डों को सन्दूक की दोनोंअलंगों के कड़ों में डालना जिस से उनके बल सन्दूक उठाया जाए।

15 वे डण्डे सन्दूक के कड़ों में लगे रहें; और उससे अलग न किए जाएं।

16 और जो साक्षीपत्र मैं तुझे दूंगा उसे उसी सन्दूक में रखना।

17 फिर चोखे सोने का एक प्रायश्चित्त का ढकना बनवाना; उसकी लम्बाई अढ़ाई हाथ, और चौड़ाई डेढ़ हाथ की हो।

18 और सोना ढालकर दो करूब बनवाकर प्रायश्चित्त के ढकने के दोनों सिरों पर लगवाना।

19 एक करूब तो एक सिरे पर और दूसरा करूब दूसरे सिरे पर लगवाना; और करूबों को और प्रायश्चित्त के ढकने को उसके ही टुकड़े से बनाकर उसके दोनो सिरों पर लगवाना।

20 और उन करूबों के पंख ऊपर से ऐसे फैले हुए बनें कि प्रायश्चित्त का ढकना उन से ढंपा रहे, और उनके मुख आम्हने-साम्हने और प्रायश्चित्त के ढकने की ओर रहें।

21 और प्रायश्चित्त के ढकने को सन्दूक के ऊपर लगवाना; और जो साक्षीपत्र मैं तुझे दूंगा उसे सन्दूक के भीतर रखना।

22 और मैं उसके ऊपर रहकर तुझ से मिला करूंगा; और इस्त्राएलियों के लिये जितनी आज्ञाएं मुझ को तुझे देनी होंगी, उन सभों के विषय मैं प्रायश्चित्त के ढकने के ऊपर से और उन करूबों के बीच में से, जो साक्षीपत्र के सन्दूक पर होंगे, तुझ से वार्तालाप किया करूंगा॥

23 फिर बबूल की लकड़ी की एक मेज बनवाना; उसकी लम्बाई दो हाथ, चौड़ाई एक हाथ, और ऊंचाई डेढ़ हाथ की हो।

24 उसे चोखे सोने से मढ़वाना, और उसके चारों ओर सोने की एक बाड़ बनवाना।

25 और उसके चारों ओर चार अंगुल चौड़ी एक पटरी बनवाना, और इस पटरी के चारों ओर सोने की एक बाड़ बनवाना।

26 और सोने के चार कड़े बनवाकर मेज के उन चारों कोनों में लगवाना जो उसके चारों पायों में होंगे।

27 वे कड़े पटरी के पास ही हों, और डण्डों के घरों का काम दें कि मेज़ उन्हीं के बल उठाई जाए।

28 और डण्डों को बबूल की लकड़ी के बनवाकर सोने से मढ़वाना, और मेज़ उन्हीं से उठाई जाए।

29 और उसके परात और धूपदान, और चमचे और उंडेलने के कटोरे, सब चोखे सोने के बनवाना।

30 और मेज़ पर मेरे आगे भेंट की रोटियां नित्य रखा करना॥

31 फिर चोखे सोने की एक दीवट बनवाना। सोना ढलवाकर वह दीवट, पाये और डण्डी सहित बनाया जाए; उसके पुष्पकोष, गांठ और फूल, सब एक ही टुकड़े के बनें;

32 और उसकी अलंगों से छ: डालियां निकलें, तीन डालियां तो दीवट की एक अलंग से और तीन डालियां उसकी दूसरी अलंग से निकली हुई हों;

33 एक एक डाली में बादाम के फूल के समान तीन तीन पुष्पकोष, एक एक गांठ, और एक एक फूल हों; दीवट से निकली हुई छहों डालियों का यही आकार या रूप हो;

34 और दीवट की डण्डी में बादाम के फूल के समान चार पुष्पकोष अपनी अपनी गांठ और फूल समेत हों;

35 और दीवट से निकली हुई छहों डालियों में से दो दो डालियों के नीचे एक एक गांठ हो, वे दीवट समेत एक ही टुकड़े के बने हुए हों।

36 उनकी गांठे और डालियां, सब दीवट समेत एक ही टुकड़े की हों, चोखा सोना ढलवाकर पूरा दीवट एक ही टुकड़े का बनवाना।

37 और सात दीपक बनवाना; और दीपक जलाए जाएं कि वे दीवट के साम्हने प्रकाश दें।

38 और उसके गुलतराश और गुलदान सब चोखे सोने के हों।

39 वह सब इन समस्त सामान समेत किक्कार भर चोखे सोने का बने।

40 और सावधान रहकर इन सब वस्तुओं को उस नमूने के समान बनवाना, जो तुझे इस पर्वत पर दिखाया गया है॥

निर्गमन 26

1 फिर निवासस्थान के लिये दस परदे बनवाना; इन को बटी हुई सनी वाले और नीले, बैंजनी और लाल रंग के कपड़े का कढ़ाई के काम किए हुए करूबों के साथ बनवाना।

2 एक एक परदे की लम्बाई अट्ठाईस हाथ और चौड़ाई चार हाथ की हो; सब परदे एक ही नाप के हों।

3 पांच परदे एक दूसरे से जुड़े हुए हों; और फिर जो पांच परदे रहेंगे वे भी एक दूसरे से जुड़े हुए हों।

4 और जहां ये दोनों पर दे जोड़े जाएं वहां की दोनों छोरों पर नीली नीली फलियां लगवाना।

5 दोनों छोरों में पचास पचास फलियां ऐसे लगवाना कि वे आम्हने साम्हने हों।

6 और सोने के पचास अंकड़े बनवाना; और परदों के पंचो को अंकड़ों के द्वारा एक दूसरे से ऐसा जुड़वाना कि निवासस्थान मिलकर एक ही हो जाए।

7 फिर निवास के ऊपर तम्बू का काम देने के लिये बकरी के बाल के ग्यारह परदे बनवाना।

8 एक एक परदे की लम्बाई तीस हाथ और चौड़ाई चार हाथ की हो; ग्यारहों परदे एक ही नाप के हों।

9 और पांच परदे अलग और फिर छ: परदे अलग जुड़वाना, और छटवें परदे को तम्बू के साम्हने मोड़ कर दुहरा कर देना।

10 और तू पचास अंकड़े उस परदे की छोर में जो बाहर से मिलाया जाएगा और पचास ही अंकड़े दूसरी ओर के परदे की छोर में जो बाहर से मिलाया जाएगा बनवाना।

11 और पीतल के पचास अंकड़े बनाना, और अंकड़ों को फलियों में लगाकर तम्बू को ऐसा जुड़वाना कि वह मिलकर एक ही हो जाए।

12 और तम्बू के परदों का लटका हुआ भाग, अर्थात जो आधा पट रहेगा, वह निवास की पिछली ओर लटका रहे।

13 और तम्बू के परदों की लम्बाई में से हाथ भर इधर, और हाथ भर उधर निवास के ढांकने के लिये उसकी दोनों अलंगों पर लटका हुआ रहे।

14 फिर तम्बू के लिये लाल रंग से रंगी हुई मेढों की खालों का एक ओढ़ना और उसके ऊपर सूइसों की खालों का भी एक ओढ़ना बनवाना॥

15 फिर निवास को खड़ा करने के लिये बबूल की लकड़ी के तख्ते बनवाना।

16 एक एक तख्ते की लम्बाई दस हाथ और चौड़ाई डेढ़ हाथ की हो।

17 एक एक तख्ते में एक दूसरे से जोड़ी हुई दो दो चूलें हों; निवास के सब तख्तों को इसी भांति से बनवाना।

18 और निवास के लिये जो तख्ते तू बनवाएगा उन में से बीस तख्ते तो दक्खिन की ओर के लिये हों;

19 और बीसों तख्तों के नीचे चांदी की चालीस कुसिर्यां बनवाना, अर्थात एक एक तख्ते के नीचे उसके चूलों के लिये दो दो कुसिर्यां।

20 और निवास की दूसरी अलंग, अर्थात उत्तर की ओर बीस तख्ते बनवाना।

21 और उनके लिये चांदी की चालीस कुसिर्यां बनवाना, अर्थात एक एक तख्ते के नीचे दो दो कुसिर्यां हों।

22 और निवास की पिछली अलंग, अर्थात पश्चिम की ओर के लिए छः तख्ते बनवाना।

23 और पिछले अलंग में निवास के कोनों के लिये दो तख्ते बनवाना;

24 और ये नीचे से दो दो भाग के हों और दोनों भाग ऊपर के सिरे तक एक एक कड़े में मिलाये जाएं; दोनों तख्तों का यही रूप हो; ये तो दोनों कोनों के लिये हों।

25 और आठ तख्तें हों, और उनकी चांदी की सोलह कुसिर्यां हों; अर्थात एक एक तख्ते के नीचे दो दो कुसिर्यां हों।

26 फिर बबूल की लकड़ी के बेंड़े बनवाना, अर्थात निवास की एक अलंग के तख्तों के लिये पांच,

27 और निवास की दूसरी अलंग के तख्तों के लिये पांच बेंडे, और निवास की जो अलंग पश्चिम की ओर पिछले भाग में होगी, उसके लिये पांच बेंड़े बनवाना।

28 और बीचवाला बेंड़ा जो तख्तों के मध्य में होगा वह तम्बू के एक सिरे से दूसरे सिरे तक पहुंचे।

29 फिर तख्तों को सोने से मढ़वाना, और उनके कड़े जो बेंड़ों के घरों का काम देंगे उन्हें भी सोने के बनवाना; और बेड़ों को भी सोने से मढ़वाना।

30 और निवास को इस रीति खड़ा करना जैसा इस पर्वत पर तुझे दिखाया गया है॥

31 फिर नीले, बैजनी और लाल रंग के और बटी हुई सूक्ष्म सनी वाले कपड़े का एक बीचवाला पर्दा बनवाना; वह कढ़ाई के काम किये हुए करूबों के साथ बने।

32 और उसको सोने से मढ़े हुए बबूल के चार ख्म्भों पर लटकाना, इनकी अंकडिय़ां सोने की हों, और ये चांदी की चार कुसिर्यों पर खड़ी रहें।

33 और बीच वाले पर्दे को अंकडिय़ों के नीचे लटकाकर, उसकी आड़ में साक्षीपत्र का सन्दूक भीतर लिवा ले जाना; सो वह बीचवाला पर्दा तुम्हारे लिये पवित्रस्थान को परमपवित्रस्थान से अलग किये रहे।

34 फिर परमपवित्र स्थान में साक्षीपत्र के सन्दूक के ऊपर प्रायश्चित्त के ढकने को रखना।

35 और उस पर्दे के बाहर निवास की उत्तर अलंग मेज़ रखना; और उसकी दक्खिन अलंग मेज़ के साम्हने दीवट को रखना।

36 फिर तम्बू के द्वार के लिये नीले, बैंजनी और लाल रंग के और बटी हुई सूक्ष्म सनी वाले कपड़े का कढ़ाई का काम किया हुआ एक पर्दा बनवाना।

37 और इस पर्दे के लिये बबूल के पांच खम्भे बनवाना, और उन को सोने से मढ़वाना; उनकी कडियां सोने की हो, और उनके लिये पीतल की पांच कुसिर्यां ढलवा कर बनवाना॥

निर्गमन 27

1 फिर वेदी को बबूल की लकड़ी की, पांच हाथ लम्बी और पांच हाथ चौड़ी बनवाना; वेदी चौकोर हो, और उसकी ऊंचाई तीन हाथ की हो।

2 और उसके चारों कोनों पर चार सींग बनवाना; वे उस समेत एक ही टुकड़े के हों, और उसे पीतल से मढ़वाना।

3 और उसकी राख उठाने के पात्र, और फावडिय़ां, और कटोरे, और कांटे, और अंगीठियां बनवाना; उसका कुल सामान पीतल का बनवाना।

4 और उसके पीतल की जाली एक झंझरी बनवाना; और उसके चारों सिरों में पीतल के चार कड़े लगवाना।

5 और उस झंझरी को वेदी के चारों ओर की कंगनी के नीचे ऐसे लगवाना, कि वह वेदी की ऊंचाई के मध्य तक पहुंचे।

6 और वेदी के लिये बबूल की लकड़ी के डण्डे बनवाना, और उन्हें पीतल से मढ़वाना।

7 और डंडे कड़ों में डाले जाएं, कि जब जब वेदी उठाई जाए तब वे उसकी दोनों अलंगों पर रहें।

8 वेदी को तख्तों से खोखली बनवाना; जैसी वह इस पर्वत पर तुझे दिखाई गई है वैसी ही बनाईं जाए॥

9 फिर निवास के आंगन को बनवाना। उसकी दक्खिन अलंग के लिये तो बटी हुई सूक्ष्म सनी के कपड़े के सब पर्दों को मिलाए कि उसकी लम्बाई सौ हाथ की हो; एक अलंग पर तो इतना ही हो।

10 और उनके बीस खम्भे बनें, और इनके लिये पीतल की बीस कुसिर्यां बनें, और खम्भों के कुन्डे और उनकी पट्टियां चांदी की हों।

11 और उसी भांति आंगन की उत्तर अलंग की लम्बाई में भी सौ हाथ लम्बे पर्दे हों, और उनके भी बीस खम्भे और इनके लिये भी पीतल के बीस खाने हों; और उन खम्भों के कुन्डे और पट्टियां चांदी की हों।

12 फिर आंगन की चौड़ाई में पच्छिम की ओर पचास हाथ के पर्दे हों, उनके खम्भे दस और खाने भी दस हों।

13 और पूरब अलंग पर आंगन की चौड़ाई पचास हाथ की हो।

14 और आंगन के द्वार की एक ओर पन्द्रह हाथ के पर्दे हों, और उनके खम्भे तीन और खाने तीन हों।

15 और दूसरी ओर भी पन्द्रह हाथ के पर्दे हों, उनके भी खम्भे तीन और खाने तीन हों।

16 और आंगन के द्वार के लिये एक पर्दा बनवाना, जो नीले, बैंजनी और लाल रंग के कपड़े और बटी हुई सूक्ष्म सनी के कपड़े का कामदार बना हुआ बीस हाथ का हो, उसके खम्भे चार और खाने भी चार हों।

17 आंगन की चारों ओर के सब खम्भे चांदी की पट्टियों से जुड़े हुए हों, उनके कुन्डे चांदी के और खाने पीतल के हों।

18 आंगन की लम्बाई सौ हाथ की, और उसकी चौड़ाई बराबर पचास हाथ की और उसकी कनात की ऊंचाई पांच हाथ की हो, उसकी कनात बटी हुई सुक्ष्म सनी के कपड़े की बने, और खम्भों के खाने पीतल के हों।

19 निवास के भांति भांति के बर्तन और सब सामान और उसके सब खूंटें और आंगन के भी सब खूंटे पीतल ही के हों॥

20 फिर तू इस्त्राएलियों को आज्ञा देना, कि मेरे पास दीवट के लिये कूट के निकाला हुआ जलपाई का निर्मल तेल ले आना, जिस से दीपक नित्य जलता रहे।

21 मिलाप के तम्बू में, उस बीच वाले पर्दे से बाहर जो साक्षीपत्र के आगे होगा, हारून और उसके पुत्र दीवट सांझ से भोर तक यहोवा के साम्हने सजा कर रखें। यह विधि इस्त्राएलियों की पीढिय़ों के लिये सदैव बनी रहेगी॥

निर्गमन 28

1 फिर तू इस्त्राएलियों में से अपने भाई हारून, और नादाब, अबीहू, एलीआज़ार और ईतामार नाम उसके पुत्रों को अपने समीप ले आना कि वे मेरे लिये याजक का काम करें।

2 और तू अपने भाई हारून के लिये वैभव और शोभा के निमित्त पवित्र वस्त्र बनवाना।

3 और जितनों के हृदय में बुद्धि है, जिन को मैं ने बुद्धि देनेवाली आत्मा से परिपूर्ण किया है, उन को तू हारून के वस्त्र बनाने की आज्ञा दे कि वह मेरे निमित्त याजक का काम करने के लिये पवित्र बनें।

4 और जो वस्त्र उन्हें बनाने होंगे वे ये हैं, अर्थात सीनाबन्द; और एपोद, और जामा, चार खाने का अंगरखा, पुरोहित का टोप, और कमरबन्द; ये ही पवित्र वस्त्र तेरे भाई हारून और उसके पुत्रों के लिये बनाए जाएं कि वे मेरे लिये याजक का काम करें।

5 और वे सोने और नीले और बैंजनी और लाल रंग का और सूक्ष्म सनी का कपड़ा लें॥

6 और वे एपोद को सोने, और नीले, बैंजनी और लाल रंग के कपड़े का और बटी हुई सूक्ष्म सनी के कपड़े का बनाएं, जो कि निपुण कढ़ाई के काम करने वाले के हाथ का काम हो।

7 और वह इस तरह से जोड़ा जाए कि उसके दोनो कन्धों के सिरे आपस में मिले रहें।

8 और एपोद पर जो काढ़ा हुआ पटुका होगा उसकी बनावट उसी के समान हो, और वे दोनों बिना जोड़ के हों, और सोने और नीले, बैंजनी और लाल रंग वाले और बटी हुई सूक्ष्म सनी वाले कपड़े के हों।

9 फिर दो सुलैमानी मणि ले कर उन पर इस्त्राएल के पुत्रों के नाम खुदवाना,

10 उनके नामों में से छ: तो एक मणि पर, और शेष छ: नाम दूसरे मणि पर, इस्त्राएल के पुत्रों की उत्पत्ति के अनुसार खुदवाना।

11 मणि खोदने वाले के काम से जैसे छापा खोदा जाता है, वैसे ही उन दो मणियों पर इस्त्राएल के पुत्रों के नाम खुदवाना; और उन को सोने के खानों में जड़वा देना।

12 और दोनों मणियों को एपोद के कन्धों पर लगवाना, वे इस्त्राएलियों के निमित्त स्मरण दिलवाने वाले मणि ठहरेंगे; अर्थात हारून उनके नाम यहोवा के आगे अपने दोनों कन्धों पर स्मरण के लिये लगाए रहे॥

13 फिर सोने के खाने बनवाना,

14 और डोरियों की नाईं गूंथे हुए दो जंजीर चोखे सोने के बनवाना; और गूंथे हुए जंजीरों को उन खानों में जड़वाना।

15 फिर न्याय की चपरास को भी कढ़ाई के काम का बनवाना; एपोद की नाईं सोने, और नीले, बैंजनी और लाल रंग के और बटी हुई सूक्ष्म सनी के कपड़े की उसे बनवाना।

16 वह चौकोर और दोहरी हो, और उसकी लम्बाई और चौड़ाई एक एक बित्ते की हों।

17 और उस में चार पांति मणि जड़ाना। पहिली पांति में तो माणिक्य, पद्मराग और लालड़ी हों;

18 दूसरी पांति में मरकत, नीलमणि और हीरा;

19 तीसरी पांति में लशम, सूर्यकांत और नीलम;

20 और चौथी पांति में फीरोजा, सुलैमानी मणि और यशब हों; ये सब सोने के खानों में जड़े जाएं।

21 और इस्त्राएल के पुत्रों के जितने नाम हैं उतने मणि हों, अर्थात उनके नामों की गिनती के अनुसार बारह नाम खुदें, बारहों गोत्रों में से एक एक का नाम एक एक मणि पर ऐसे खुदे जेसे छापा खोदा जाता है।

22 फिर चपरास पर डोरियों की नाईं। गूंथे हुए चोखे सोने की जंजीर लगवाना;

23 और चपरास में सोने की दो कडिय़ां लगवाना, और दोनों कडिय़ों को चपरास के दोनो सिरों पर लगवाना।

24 और सोने के दोनों गूंथे जंजीरों को उन दोनों कडिय़ों में जो चपरास के सिरों पर होंगी लगवाना;

25 और गूंथे हुए दोनो जंजीरों के दोनों बाकी सिरों को दोनों खानों में जड़वा के एपोद के दोनों कन्धों के बंधनों पर उसके साम्हने लगवाना।

26 फिर सोने की दो और कडिय़ां बनवाकर चपरास के दोनों सिरों पर, उसकी उस कोर पर जो एपोद की भीतर की ओर होगी लगवाना।

27 फिर उनके सिवाय सोने की दो और कडिय़ां बनवाकर एपोद के दोनों कन्धों के बंधनों पर, नीचे से उनके साम्हने और उसके जोड़ के पास एपोद के काढ़े हुए पटुके के ऊपर लगवाना।

28 और चपरास अपनी कडिय़ों के द्वारा एपोद की कडिय़ों में नीले फीते से बांधी जाए, इस रीति वह एपोद के काढ़े हुए पटुके पर बनी रहे, और चपरास एपोद पर से अलग न होने पाए।

29 और जब जब हारून पवित्रस्थान में प्रवेश करे, तब तब वह न्याय की चपरास पर अपने हृदय के ऊपर इस्त्राएलियों के नामों को लगाए रहे, जिस से यहोवा के साम्हने उनका स्मरण नित्य रहे।

30 और तू न्याय की चपरास में ऊरीम और तुम्मीम को रखना, और जब जब हारून यहोवा के साम्हने प्रवेश करे, तब तब वे उसके हृदय के ऊपर हों; इस प्रकार हारून इस्त्राएलियों के न्याय पदार्थ को अपने हृदय के ऊपर यहोवा के साम्हने नित्य लगाए रहे॥

31 फिर एपोद के बागे को सम्पूर्ण नीले रंग का बनवाना।

32 और उसकी बनावट ऐसी हो कि उसके बीच में सिर डालने के लिये छेद हो, और उस छेद की चारों ओर बखतर के छेद की सी एक बुनी हुई कोर हो, कि वह फटने न पाए।

33 और उसके नीचे वाले घेरे में चारों ओर नीले, बैंजनी और लाल रंग के कपड़े के अनार बनवाना, और उनके बीच बीच चारों ओर सोने की घंटीयां लगवाना,

34 अर्थात एक सोने की घंटी और एक अनार, फिर एक सोने की घंटी और एक अनार, इसी रीति बागे के नीचे वाले घेरे में चारों ओर ऐसा ही हो।

35 और हारून एक बागे को सेवा टहल करने के समय पहिना करे, कि जब जब वह पवित्रस्थान के भीतर यहोवा के साम्हने जाए, वा बाहर निकले, तब तब उसका शब्द सुनाईं दे, नहीं तो वह मर जाएगा।

36 फिर चोखे सोने का एक टीका बनवाना, और जैसे छापे में वैसे ही उस में ये अक्षर खोदें जाएं, अर्थात यहोवा के लिये पवित्र।

37 और उसे नीले फीते से बांधना; और वह पगड़ी के साम्हने के हिस्से पर रहे।

38 और हारून के माथे पर रहे, इसलिये कि इस्त्राएली जो कुछ पवित्र ठहराएं, अर्थात जितनी पवित्र वस्तुएं भेंट में चढ़ावें उन पवित्र वस्तुओं का दोष हारून उठाए रहे, और वह नित्य उसके माथे पर रहे, जिस से यहोवा उन से प्रसन्न रहे॥

39 और अंगरखे को सूक्ष्म सनी के कपड़े का चारखाना बुनवाना, और एक पगड़ी भी सूक्ष्म सनी के कपड़े की बनवाना, और कारचोबी काम किया हुआ एक कमरबन्द भी बनवाना॥

40 फिर हारून के पुत्रों के लिये भी अंगरखे और कमरबन्द और टोपियां बनवाना; ये वस्त्र भी वैभव और शोभा के लिये बनें।

41 अपने भाई हारून और उसके पुत्रों को ये ही सब वस्त्र पहिनाकर उनका अभिषेक और संस्कार करना, और उन्हें पवित्र करना, कि वे मेरे लिये याजक का काम करें।

42 और उनके लिये सनी के कपड़े की जांघिया बनवाना जिन से उनका तन ढपा रहे; वे कमर से जांघ तक की हों;

43 और जब जब हारून वा उसके पुत्र मिलाप वाले तम्बू में प्रवेश करें, वा पवित्र स्थान में सेवा टहल करने को वेदी के पास जाएं तब तब वे उन जांघियों को पहिने रहें, न हो कि वे पापी ठहरें और मर जाएं। यह हारून के लिये और उसके बाद उसके वंश के लिये भी सदा की विधि ठहरें॥

निर्गमन 29

1 और उन्हें पवित्र करने को जो काम तुझे उन से करना है, कि वे मेरे लिये याजक का काम करें वह यह है। एक निर्दोष बछड़ा और दो निर्दोष मेंढ़े लेना,

2 और अखमीरी रोटी, और तेल से सने हुए मैदे के अखमीरी फुलके, और तेल से चुपड़ी हुई अखमीरी पपडिय़ां भी लेना। ये सब गेहूं के मैदे के बनवाना।

3 इन को एक टोकरी में रखकर उस टोकरी को उस बछड़े और उन दोनों मेंढ़ो समेत समीप ले आना।

4 फिर हारून और उसके पुत्रों को मिलाप वाले तम्बू के द्वार के समीप ले आकर जल से नहलाना।

5 तब उन वस्त्रों को ले कर हारून को अंगरखा ओर एपोद का बागा पहिनाना, और एपोद और चपरास बान्धना, और एपोद का काढ़ा हुआ पटुका भी बान्धना;

6 और उसके सिर पर पगड़ी को रखना, और पगड़ी पर पवित्र मुकुट को रखना।

7 तब अभिषेक का तेल ले उसके सिर पर डालकर उसका अभिषेक करना।

8 फिर उसके पुत्रों को समीप ले आकर उन को अंगरखे पहिनाना,

9 और उसके अर्थात हारून और उसके पुत्रों के कमर बान्धना और उनके सिर पर टोपियां रखना; जिस से याजक के पद पर सदा उनका हक रहे। इसी प्रकार हारून और उसके पुत्रों का संस्कार करना।

10 और बछड़े को मिलाप वाले तम्बू के साम्हने समीप ले आना। और हारून और उसके पुत्र बछड़े के सिर पर अपने अपने हाथ रखें,

11 तब उस बछड़े को यहोवा के सम्मुख मिलाप वाले तम्बू के द्वार पर बलिदान करना,

12 और बछड़े के लोहू में से कुछ ले कर अपनी उंगली से वेदी के सींगों पर लगाना, और शेष सब लोहू को वेदी के पाए पर उंडेल देना

13 और जिस चरबी से अंतडिय़ां ढपी रहती हैं, और जो झिल्ली कलेजे के ऊपर होती है, उन को और दोनो गुर्दों को उनके ऊपर की चरबी समेत ले कर सब को वेदी पर जलाना।

14 और बछड़े का मांस, और खाल, और गोबर, छावनी से बाहर आग में जला देना; क्योंकि यह पापबलि होगा।

15 फिर एक मेढ़ा लेना, और हारून और उसके पुत्र उसके सिर पर अपने अपने हाथ रखें,

16 तब उस मेढ़ें को बलि करना, और उसका लोहू ले कर वेदी पर चारों ओर छिड़कना।

17 और उस मेढ़े को टुकड़े टुकड़े काटना, और उसकी अंतडिय़ों और पैरों को धोकर उसके टुकड़ों और सिर के ऊपर रखना,

18 तब उस पूरे मेढ़े को वेदी पर जलाना; वह तो यहोवा के लिये होमबलि होगा; वह सुखदायक सुगन्ध और यहोवा के लिये हवन होगा।

19 फिर दूसरे मेढ़े को लेना; और हारून और उसके पुत्र उसके सिर पर अपने अपने हाथ रखें,

20 तब उस मेंड़े को बलि करना, और उसके लोहू में से कुछ ले कर हारून और उसके पुत्रों के दाहिने कान के सिरे पर, और उनके दाहिने हाथ और दाहिने पांव के अंगूठों पर लगाना, और लोहू को वेदी पर चारों ओर छिड़क देना।

21 फिर वेदी पर के लोहू, और अभिषेक के तेल, इन दोनो में से कुछ कुछ ले कर हारून और उसके वस्त्रों पर, और उसके पुत्रों और उनके वस्त्रों पर भी छिड़क देना; तब वह अपने वस्त्रों समेत और उसके पुत्र भी अपने अपने वस्त्रों समेत पवित्र हो जाएंगे।

22 तब मेढ़े को संस्कारवाला जानकर उस में से चरबी और मोटी पूंछ को, और जिस चरबी से अंतडिय़ां ढपी रहती हैं उसको, और कलेजे पर की झिल्ली को, और चरबी समेत दोनों गुर्दों को, और दाहिने पुट्ठे को लेना,

23 और अखमीरी रोटी की टोकरी जो यहोवा के आगे धरी होगी उस में से भी एक रोटी, और तेल से सने हुए मैदे का एक फुलका, और एक पपड़ी ले कर,

24 इन सब को हारून और उसके पुत्रों के हाथों में रखकर हिलाए जाने की भेंट ठहराके यहोवा के आगे हिलाया जाए।

25 तब उन वस्तुओं को उनके हाथों से ले कर होमबलि की वेदी पर जला देना, जिस से वह यहोवा के साम्हने सुखदायक सुगन्ध ठहरे; वह तो यहोवा के लिये हवन होगा।

26 फिर हारून के संस्कार का जो मेंढ़ा होगा उसकी छाती को ले कर हिलाए जाने की भेंट के लिये यहोवा के आगे हिलाना; और वह तेरा भाग ठहरेगा।

27 और हारून और उसके पुत्रों के संस्कार का जो मेढ़ा होगा, उस में से हिलाए जाने की भेंटवाली छाती जो हिलाई जाएगी, और उठाए जाने का भेंटवाला पुट्ठा जो उठाया जाएगा, इन दोनों को पवित्र ठहराना।

28 और ये सदा की विधि की रीति पर इस्त्राएलियों की ओर से उसका और उसके पुत्रों का भाग ठहरे, क्योंकि ये उठाए जाने की भेंटें ठहरी हैं; और यह इस्त्राएलियों की ओर से उनके मेलबलियों में से यहोवा के लिये उठाऐ जाने की भेंट होगी।

29 और हारून के जो पवित्र वस्त्र होंगे वह उसके बाद उसके बेटे पोते आदि को मिलते रहें, जिस से उन्हीं को पहिने हुए उनका अभिषेक और संस्कार किया जाए।

30 उसके पुत्रों के जो उसके स्थान पर याजक होगा, वह जब पवित्रस्थान में सेवा टहल करने को मिलाप वाले तम्बू में पहिले आए, तब उन वस्त्रों को सात दिन तक पहिने रहें।

31 फिर याजक के संस्कार का जो मेढ़ा होगा उसे ले कर उसका मांस किसी पवित्र स्थान में पकाना;

32 तब हारून अपने पुत्रों समेत उस मेढे का मांस और टोकरी की रोटी, दोनों को मिलाप वाले तम्बू के द्वार पर खाए।

33 और जिन पदार्थों से उनका संस्कार और उन्हें पवित्र करने के लिये प्रायश्चित्त किया जाएगा उन को तो वे खाएं, परन्तु पराए कुल का कोई उन्हें न खाने पाए, क्योंकि वे पवित्र होंगे।

34 और यदि संस्कार वाले मांस वा रोटी में से कुछ बिहान तक बचा रहे, तो उस बचे हुए को आग में जलाना, वह खाया न जाए; क्योंकि वह पवित्र होगा।

35 और मैं ने तुझे जो जो आज्ञा दी हैं, उन सभों के अनुसार तू हारून और उसके पुत्रों से करना; और सात दिन तक उनका संस्कार करते रहना,

36 अर्थात पापबलि का एक बछड़ा प्रायश्चित्त के लिये प्रतिदिन चढ़ाना। और वेदी को भी प्रायश्चित्त करने के समय शुद्ध करना, और उसे पवित्र करने के लिये उसका अभिषेक करना।

37 सात दिन तक वेदी के लिये प्रायश्चित्त करके उसे पवित्र करना, और वेदी परमपवित्र ठहरेगी; और जो कुछ उससे छू जाएगा वह भी पवित्र हो जाएगा॥

38 जो तुझे वेदी पर नित्य चढ़ाना होगा वह यह है; अर्थात प्रतिदिन एक एक वर्ष के दो भेड़ी के बच्चे।

39 एक भेड़ के बच्चे को तो भोर के समय, और दूसरे भेड़ के बच्चे को गोधूलि के समय चढ़ाना।

40 और एक भेड़ के बच्चे के संग हीन की चौथाई कूटके निकाले हुए तेल से सना हुआ एपा का दसवां भाग मैदा, और अर्घ के लिये ही की चौताई दाखमधु देना।

41 और दूसरे भेड़ के बच्चे को गोधूलि के समय चढ़ाना, और उसके साथ भोर की रीति अनुसार अन्नबलि और अर्घ दोनों देना, जिस से वह सुखदायक सुगन्ध और यहोवा के लिये हवन ठहरे।

42 तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में यहोवा के आगे मिलाप वाले तम्बू के द्वार पर नित्य ऐसा ही होमबलि हुआ करे; यह वह स्थान है जिस में मैं तुम लोगों से इसलिये मिला करूंगा, कि तुझ से बातें करूं।

43 और मैं इस्त्राएलियों से वहीं मिला करूंगा, और वह तम्बू मेरे तेज से पवित्र किया जाएगा।

44 और मैं मिलाप वाले तम्बू और वेदी को पवित्र करूंगा, और हारून और उसके पुत्रों को भी पवित्र करूंगा, कि वे मेरे लिये याजक का काम करें।

45 और मैं इस्त्राएलियों के मध्य निवास करूंगा, और उनका परमेश्वर ठहरूंगा।

46 तब वे जान लेंगे कि मैं यहोवा उनका परमेश्वर हूं, जो उन को मिस्र देश से इसलिये निकाल ले आया, कि उनके मध्य निवास करूं; मैं ही उनका परमेश्वर यहोवा हूं॥

निर्गमन 30

1 फिर धूप जलाने के लिये बबूल की लकड़ी की वेदी बनाना।

2 उसकी लम्बाई एक हाथ और चौड़ाई एक हाथ की हो, वह चौकोर हो, और उसकी ऊंचाई दो हाथ की हो, और उसके सींग उसी टुकड़े से बनाए जाएं।

3 और वेदी के ऊपर वाले पल्ले और चारों ओर की अलंगों और सींगों को चोखे सोने से मढ़ना, और इसकी चारों ओर सोने की एक बाड़ बनाना।

4 और इसकी बाड़ के नीचे इसके दानों पल्ले पर सोने के दो दो कड़े बनाकर इसके दोनों ओर लगाना, वे इसके उठाने के डण्डों के खानों का काम देंगे।

5 और डण्डों को बबूल की लकड़ी के बनाकर उन को सोने से मढ़ना।

6 और तू उसको उस पर्दे के आगे रखना जो साक्षीपत्र के सन्दूक के साम्हने है, अर्थात प्रायश्चित्त वाले ढकने के आगे जो साक्षीपत्र के ऊपर है, वहीं मैं तुझ से मिला करूंगा।

7 और उसी वेदी पर हारून सुगन्धित धूप जलाया करे; प्रतिदिन भोर को जब वह दीपक को ठीक करे तब वह धूप को जलाए,

8 तब गोधूलि के समय जब हारून दीपकों को जलाए तब धूप जलाया करे, यह धूप यहोवा के साम्हने तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में नित्य जलाया जाए।

9 और उस वेदी पर तुम और प्रकार का धूप न जलाना, और न उस पर होमबलि और न अन्नबलि चढ़ाना; और न इस पर अर्घ देना।

10 और हारून वर्ष में एक बार इसके सींगों पर प्रायश्चित्त करे; और तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में वर्ष में एक बार प्रायश्चित्त लिया जाए; यह यहोवा के लिये परमपवित्र है॥

11 और तब यहोवा ने मूसा से कहा,

12 जब तू इस्त्राएलियों की गिनती लेने लगे, तब वे गिनने के समय जिनकी गिनती हुई हो अपने अपने प्राणों के लिये यहोवा को प्रायश्चित्त दें, जिस से जब तू उनकी गिनती कर रहा हो उस समय कोई विपत्ति उन पर न आ पड़े।

13 जितने लोग गिने जाएं वे पवित्रस्थान के शेकेल के लिये आधा शेकेल दें, यह शेकेल बीस गेरा का होता है, यहोवा की भेंट आधा शेकेल हो।

14 बीस वर्ष के वा उससे अधिक अवस्था के जितने गिने जाएं उन में से एक एक जन यहोवा की भेंट दे।

15 जब तुम्हारे प्राणों के प्रायश्चित्त के निमित्त यहोवा की भेंट दी जाए, तब न तो धनी लोग आधे शेकेल से अधिक दें, और न कंगाल लोग उससे कम दें।

16 और तू इस्त्राएलियों से प्रायश्चित्त का रूपया ले कर मिलाप वाले तम्बू के काम में लगाना; जिस से वह यहोवा के सम्मुख इस्त्राएलियों के स्मरणार्थ चिन्ह ठहरे, और उनके प्राणों का प्रायश्चित्त भी हो॥

17 और यहोवा ने मूसा से कहा,

18 धोने के लिये पीतल की एक हौदी और उसका पाया पीतल का बनाना। और उसे मिलाप वाले तम्बू और वेदी के बीच में रखकर उस में जल भर देना;

19 और उस में हारून और उसके पुत्र अपने अपने हाथ पांव धोया करें।

20 जब जब वे मिलाप वाले तम्बू में प्रवेश करें तब तब वे हाथ पांव जल से धोएं, नहीं तो मर जाएंगे; और जब जब वे वेदी के पास सेवा टहल करने, अर्थात यहोवा के लिये हव्य जलाने को आएं तब तब वे हाथ पांव धोएं, न हो कि मर जाएं।

21 यह हारून और उसके पीढ़ी पीढ़ी के वंश के लिये सदा की विधि ठहरे॥

22 फिर यहोवा ने मूसा से कहा,

23 तू मुख्य मुख्य सुगन्ध द्रव्य, अर्थात पवित्रस्थान के शेकेल के अनुसार पांच सौ शेकेल अपने आप निकला हुआ गन्धरस, और उसका आधा, अर्थात अढ़ाई सौ शेकेल सुगन्धित अगर,

24 और पांच सौ शेकेल तज, और एक हीन जलपाई का तेल ले कर

25 उन से अभिषेक का पवित्र तेल, अर्थात गन्धी की रीति से तैयार किया हुआ सुगन्धित तेल बनवाना; यह अभिषेक का पवित्र तेल ठहरे।

26 और उससे मिलाप वाले तम्बू का, और साक्षीपत्र के सन्दूक का,

27 और सारे सामान समेत मेज़ का, और सामान समेत दीवट का, और धूपवेदी का,

28 और सारे सामान समेत होमवेदी का, और पाए समेत हौदी का अभिषेक करना।

29 और उन को पवित्र करना, जिस से वे परमपवित्र ठहरें; और जो कुछ उन से छू जाएगा वह पवित्र हो जाएगा।

30 फिर हारून का उसके पुत्रों के साथ अभिषेक करना, और इस प्रकार उन्हें मेरे लिये याजक का काम करने के लिये पवित्र करना।

31 और इस्त्राएलियों को मेरी यह आज्ञा सुनाना, कि वह तेल तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में मेरे लिये पवित्र अभिषेक का तेल होगा।

32 वह किसी मनुष्य की देह पर न डाला जाए, और मिलावट में उसके समान और कुछ न बनाना; वह तो पवित्र होगा, वह तुम्हारे लिये पवित्र होगा।

33 जो कोई उसके समान कुछ बनाए, वा जो कोई उस में से कुछ पराए कुल वाले पर लगाए, वह अपने लोगों में से नाश किया जाए॥

34 फिर यहोवा ने मूसा से कहा, बोल, नखी और कुन्दरू, ये सुगन्ध द्रव्य निर्मल लोबान समेत ले लेना, ये सब एक तौल के हों,

35 और इनका धूप अर्थात लोन मिलाकर गन्धी की रीति के अनुसार चोखा और पवित्र सुगन्ध द्रव्य बनवाना;

36 फिर उस में से कुछ पीसकर बुकनी कर डालना, तब उस में से कुछ मिलाप वाले तम्बू में साक्षीपत्र के आगे, जहां पर मैं तुझ से मिला करूंगा वहां रखना; वह तुम्हारे लिये परमपवित्र होगा।

37 और जो धूप तू बनवाएगा, मिलावट में उसके समान तुम लोग अपने लिये और कुछ न बनवाना; वह तुम्हारे आगे यहोवा के लिये पवित्र होगा।

38 जो कोई सूंघने के लिये उसके समान कुछ बनाए वह अपने लोगों में से नाश किया जाए॥

निर्गमन 31

1 फिर यहोवा ने मूसा से कहा,

2 सुन, मैं ऊरी के पुत्र बसलेल को, जो हूर का पोता और यहूदा के गोत्र का है, नाम ले कर बुलाता हूं।

3 और मैं उसको परमेश्वर की आत्मा से जो बुद्धि, प्रवीणता, ज्ञान, और सब प्रकार के कार्यों की समझ देनेवाली आत्मा है परिपूर्ण करता हूं,

4 जिस से वह कारीगरी के कार्य बुद्धि से निकाल निकाल कर सब भांति की बनावट में, अर्थात सोने, चांदी, और पीतल में,

5 और जड़ने के लिये मणि काटने में, और लकड़ी के खोदने में काम करे।

6 और सुन, मैं दान के गोत्र वाले अहीसामाक के पुत्र ओहोलीआब को उसके संग कर देता हूं; वरन जितने बुद्धिमान है उन सभों के हृदय में मैं बुद्धि देता हूं, जिस से जितनी वस्तुओं की आज्ञा मैं ने तुझे दी है उन सभों को वे बनाएं;

7 अर्थात मिलापवाला तम्बू, और साक्षीपत्र का सन्दूक, और उस पर का प्रायश्चित्तवाला ढकना, और तम्बू का सारा सामान,

8 और सामान सहित मेज़, और सारे सामान समेत चोखे सोने की दीवट, और धूपवेदी,

9 और सारे सामान सहित होमवेदी, और पाए समेत हौदी,

10 और काढ़े हुए वस्त्र, और हारून याजक के याजक वाले काम के पवित्र वस्त्र, और उसके पुत्रों के वस्त्र,

11 और अभिषेक का तेल, और पवित्र स्थान के लिये सुगन्धित धूप, इन सभों को वे उन सब आज्ञाओं के अनुसार बनाएं जो मैं ने तुझे दी हैं॥

12 फिर यहोवा ने मूसा से कहा,

13 तू इस्त्राएलियों से यह भी कहना, कि निश्चय तुम मेरे विश्रामदिनों को मानना, क्योंकि तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में मेरे और तुम लोगों के बीच यह एक चिन्ह ठहरा है, जिस से तुम यह बात जान रखो कि यहोवा हमारा पवित्र करनेहारा है।

14 इस कारण तुम विश्रामदिन को मानना, क्योंकि वह तुम्हारे लिये पवित्र ठहरा है; जो उसको अपवित्र करे वह निश्चय मार डाला जाए; जो कोई उस दिन में से कुछ कामकाज करे वह प्राणी अपने लोगों के बीच से नाश किया जाए।

15 छ: दिन तो काम काज किया जाए, पर सातवां दिन पर मविश्राम का दिन और यहोवा के लिये पवित्र है; इसलिये जो कोई विश्राम के दिन में कुछ काम काज करे वह निश्चय मार डाला जाए।

16 सो इस्त्राएली विश्रामदिन को माना करें, वरन पीढ़ी पीढ़ी में उसको सदा की वाचा का विषय जानकर माना करें।

17 वह मेरे और इस्त्राएलियों के बीच सदा एक चिन्ह रहेगा, क्योंकि छ: दिन में यहोवा ने आकाश और पृथ्वी को बनाया, और सातवें दिन विश्राम करके अपना जी ठण्डा किया॥

18 जब परमेश्वर मूसा से सीनै पर्वत पर ऐसी बातें कर चुका, तब उसने उसको अपनी उंगली से लिखी हुई साक्षी देनेवाली पत्थर की दोनों तख्तियां दी॥