यहेजकेल 42

1 फिर वह मुझे बाहरी आंगन में उत्तर की ओर ले गया, और मुझे उन दो कोठरियों के पास लाया जो भवन के आंगन के साम्हने और उसकी उत्तर ओर थीं। 2 सौ हाथ की दूरी पर उत्तरी द्वार था, और चौड़ाई पचास हाथ की थी। 3 भीतरी आंगन के बीस हाथ साम्हने और बाहरी […]

यहेजकेल 43

1 फिर वह मुझ को उस फाटक के पास ले गया जो पूर्वमुखी था। 2 तब इस्राएल के परमेश्वर का तेज पूर्व दिशा से आया; और उसकी वाणी बहुत से जल की घरघराहट सी हुई; और उसके तेज से पृथ्वी प्रकाशित हुई। 3 और यह दर्शन उस दर्शन के तुल्य था, जो मैं ने उसे […]

यहेजकेल 44

1 फिर वह मुझे पवित्र स्थान के उस बाहरी फाटक के पास लौटा ले गया, जो पूर्वमुखी है; और वह बन्द था। 2 तब यहोवा ने मुझ से कहा, यह फाटक बन्द रहे और खेला न जाए; कोई इस से हो कर भीतर जाने न पाए; क्योंकि इस्राएल का परमेश्वर यहोवा इस से हो कर […]

यहेजकेल 45

1 जब तुम चिट्ठी डाल कर देश को बांटो, तब देश में से एक भाग पवित्र जान कर यहोवा को अर्पण करना; उसकी लम्बाई पच्चीस हजार बांस की और चौड़ाई दस हजार बांस की हो; वह भाग अपने चारों ओर के सिवाने तक पवित्र ठहरे। 2 उस में से पवित्रस्थान के लिये पांच सौ बांस […]

यहेजकेल 46

1 परमेश्वर यहोवा यों कहता है, भीतरी आंगन का पूर्वमुखी फाटक काम काज के छहों दिन बन्द रहे, परन्तु विश्राम दिन को खुला रहे। और नये चांद के दिन भी खुला रहे। 2 प्रधान बाहर से फाटक के ओसारे के मार्ग से आकर फाटक के एक खम्भे के पास खड़ा हो जाए, और याजक उसका […]

यहेजकेल 47

1 फिर वह मुझे भवन के द्वार पर लौटा ले गया; और भवन की डेवढ़ी के नीचे से एक सोता निकलकर पूर्व ओर बह रहा था। भवन का द्वार तो पूर्वमुखी था, और सोता भवन के पूर्व और वेदी के दक्खिन, नीचे से निकलता था। 2 तब वह मुझे उत्तर के फाटक से हो कर […]

यहेजकेल 48

1 गोत्रें के भाग ये हों; उत्तर सिवाने से लगा हुआ हेतलोन के मार्ग के पास से हमात की घाटी तक, और दमिश्क के सिवाने के पास के हमरेनान से उत्तर ओर हमात के पास तक एक भाग दान का हो; और उसके पूवीं और पश्चिमी सिवाने भी हों। 2 दान के सिवाने से लगा […]

विलापगीत 1

1 जो नगरी लोगों से भरपूर थी वह अब कैसी अकेली बैठी हुई है! वह क्यों एक विधवा के समान बन गई? वह जो जातियों की दृष्टि में महान और प्रान्तों में रानी थी, अब क्यों कर देने वाली हो गई है। 2 रात को वह फूट फूट कर रोती है, उसके आंसू गालों पर […]

विलापगीत 2

1 यहोवा ने सिय्योन की पुत्री को किस प्रकार अपने कोप के बादलों से ढांप दिया है! उसने इस्राएल की शोभा को आकाश से धरती पर पटक दिया; और कोप के दिन अपने पांवों की चौकी को स्मरण नहीं किया। 2 यहोवा ने याकूब की सब बस्तियों को निठुरता से नष्ट किया है; उसने रोष […]

विलापगीत 3

1 उसके रोष की छड़ी से दु:ख भोगने वाला पुरुष मैं ही हूं; 2 वह मुझे ले जा कर उजियाले में नहीं, अन्धियारे ही में चलाता है; 3 उसका हाथ दिन भर मेरे ही विरुद्ध उठता रहता है। 4 उसने मेरा मांस और चमड़ा गला दिया है, और मेरी हड्डियों को तोड़ दिया है; 5 […]